৮৮

পরিচ্ছেদঃ

৮৮। শস্য কৃষকদের জন্য, যদিও তা ছিনিয়ে নিয়ে থাকে।

হাদীসটি বাতিল, এটির কোন ভিত্তি নেই।

সান’আনী “সুবুলুস সালাম" গ্রন্থে (৩/৬০) বলেনঃ কেউ এটিকে উল্লেখ করেননি। "আল-মানার" গ্রন্থে বলা হয়েছেঃ এ হাদিসটিকে খুজাখুজি করেছি কিন্তু পাই নি।

শাওকানী “নাইলুল আওতার” গ্রন্থে বলেনঃ এটির ব্যাপারে অবহিত হইনি, এটিতে দৃষ্টি দেয়া দরকার।

আমি (আলবানী) বলছিঃ আমি এটির ব্যাপারে দৃষ্টি দিয়েছি, কিন্তু তার ভিত্তি পাইনি। বরং এটিকে সহীহ হাদীসের বিপরীতে পেয়েছি।

من أحيا أرضا ميتة فهي له، وليس لعرق ظالم حق

“যে ব্যক্তি মৃত যমীন জীবিত করবে (আবাদ করবে) তা তার জন্যেই। অত্যাচারীর জন্য এতে কোন হক নেই।"

হাদীসটি সহীহ্ সনদে আবু দাউদে (২/৫০) বর্ণিত হয়েছে। তিরমিযী (২/২২৯) হাদীসটিকে হাসান বলেছেন।


من زرع في أرض قوم بغير إذنهم، فليس له من الزرع شيء، وترد عليه نفقته

"যে ব্যক্তি কোন সম্প্রদায়ের জমি তাদের বিনা অনুমতিতে চাষ করবে, তার সেই ক্ষেত হতে কোন অংশ নেই। তাকে তার খরচগুলো দিয়ে দিতে হবে।"

হাদীসটি আবু দাউদ (২/২৩), তিরমিযী (২/২৯১), ইবনু মাজাহ (২/৯০), তাহাবী “আল-মুশকিল" গ্রন্থে (৩/২৮০), বাইহাকী (৬/১৩৬) ও ইমাম আহমাদ (৪/১৪১) বর্ণনা করেছেন। ইমাম বুখারী এটিকে হাসান বলেছেন। এটি সহীহ অনুরূপ অর্থের বহু হাদীস থাকার কারণে। দেখুন “ইরওয়াউল গালীল” (হাঃ নংঃ ১৫১৯)

الزرع للزارع، وإن كان غاصبا
باطل لا أصل له

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قال الصنعاني في " سبل السلام " (3 / 60) : لم يخرجه أحد، قال في " المنار ": وقد بحثت عنه فلم أجده، والشارح نقله وبيض لمخرجه، وقال الشوكاني في " نيل الأو طار " (5 / 272) : ولم أقف عليه فلينظر فيه
قلت: نظرت فيه فلم أعثر عليه، بل وجدته مخالفا للأحاديث الثابتة في الباب
الأول: من أحيا أرضا ميتة فهي له، وليس لعرق ظالم حق
أخرجه أبو داود (2 / 50) بسند صحيح عن سعيد بن زيد رضي الله عنه، وحسنه الترمذي (2 / 229) وهو مخرج في " الإرواء " (1550) ، قال في النهاية: وليس لعرق ظالم حق، هو أن يجيء الرجل إلى أرض قد أحياها رجل قبله فيغرس فيها غرسا غصبا ليستوجب به الأرض، والرواية لعرق بالتنوين، وهو على حذف المضاف، أي: لذي عرق ظالم، فجعل العرق نفسه ظالما، والحق لصاحبه، أو يكون الظالم من صفة صاحب العرق، وإن روي عرق بالإضافة فيكون الظالم صاحب العرق والحق
للعرق، وهو أحد عروق الشجرة
قلت: فظاهر الحديث يدل على أنه ليس له حق في الأرض، ويحتمل أنه حق مطلقا لا في الأرض ولا في الزرع، ويؤيده الحديث التالي، وهو
الثاني: " من زرع في أرض قوم بغير إذنهم، فليس له من الزرع شيء، وترد عليه نفقته "، أخرجه أبو داود (2 / 23) والترمذي (2 / 291) وابن ماجه (2 /90) والطحاوي في " المشكل " (3 / 280) والبيهقي (6 / 136) وأحمد (4 /141) من حديث رافع بن خديج، وقال الترمذي: حديث حسن غريب، والعمل عليه عند بعض أهل العلم، وهو قول أحمد وإسحاق، وسألت محمد بن إسماعيل عن هذا الحديث؟ فقال: هو حديث حسن، قال الصنعاني: وله شواهد تقويه
قلت: وقد خرجتها مع الحديث، وبينت صحته في " إرواء الغليل " (1519) فليراجعه من شاء

الزرع للزارع، وان كان غاصبا باطل لا اصل له - قال الصنعاني في " سبل السلام " (3 / 60) : لم يخرجه احد، قال في " المنار ": وقد بحثت عنه فلم اجده، والشارح نقله وبيض لمخرجه، وقال الشوكاني في " نيل الاو طار " (5 / 272) : ولم اقف عليه فلينظر فيه قلت: نظرت فيه فلم اعثر عليه، بل وجدته مخالفا للاحاديث الثابتة في الباب الاول: من احيا ارضا ميتة فهي له، وليس لعرق ظالم حق اخرجه ابو داود (2 / 50) بسند صحيح عن سعيد بن زيد رضي الله عنه، وحسنه الترمذي (2 / 229) وهو مخرج في " الارواء " (1550) ، قال في النهاية: وليس لعرق ظالم حق، هو ان يجيء الرجل الى ارض قد احياها رجل قبله فيغرس فيها غرسا غصبا ليستوجب به الارض، والرواية لعرق بالتنوين، وهو على حذف المضاف، اي: لذي عرق ظالم، فجعل العرق نفسه ظالما، والحق لصاحبه، او يكون الظالم من صفة صاحب العرق، وان روي عرق بالاضافة فيكون الظالم صاحب العرق والحق للعرق، وهو احد عروق الشجرة قلت: فظاهر الحديث يدل على انه ليس له حق في الارض، ويحتمل انه حق مطلقا لا في الارض ولا في الزرع، ويويده الحديث التالي، وهو الثاني: " من زرع في ارض قوم بغير اذنهم، فليس له من الزرع شيء، وترد عليه نفقته "، اخرجه ابو داود (2 / 23) والترمذي (2 / 291) وابن ماجه (2 /90) والطحاوي في " المشكل " (3 / 280) والبيهقي (6 / 136) واحمد (4 /141) من حديث رافع بن خديج، وقال الترمذي: حديث حسن غريب، والعمل عليه عند بعض اهل العلم، وهو قول احمد واسحاق، وسالت محمد بن اسماعيل عن هذا الحديث؟ فقال: هو حديث حسن، قال الصنعاني: وله شواهد تقويه قلت: وقد خرجتها مع الحديث، وبينت صحته في " ارواء الغليل " (1519) فليراجعه من شاء
হাদিসের মানঃ জাল (Fake)
পুনঃনিরীক্ষণঃ
যঈফ ও জাল হাদিস
১/ বিবিধ