পরিচ্ছেদঃ
৯৫৮। আমি সওম পালন করা অবস্থায় তিনি আমার চেহারার কোন কিছুই স্পর্শ করতেন না। উক্ত ভাষাটি আয়েশা (রাঃ) বলেছেন।
হাদীছটি মুনকার।
এটি ইবনু হিব্বান তার "সাহীহ" (৯০৪) গ্রন্থে ইমরান ইবনু মূসা হতে তিনি উছমান ইবনু আবী শাইবাহ হতে তিনি ওয়াকী হতে তিনি যাকারিয়া ইবনু আবী যায়েদাহ হতে তিনি আল-আব্বাস ইবনু যুরায়েহ হতে তিনি শা’বী হতে তিনি মুহাম্মাদ ইবনু আশয়াছ হতে তিনি আয়েশা (রাঃ) হতে বর্ণনা করেছেন।
তবে ইমাম আহমাদ (৬/১৬২) ওয়াকীর মাধ্যমে যাকারিয়া হতে ... এবং ইয়াহইয়া ইবনু যাকারিয়ার মাধ্যমে তার পিতা হতে তিনি সালেহ আল-আসাদী হতে তিনি শাবী হতে তিনি মুহাম্মদ ইবনুল আশয়াছ ইবনে কায়েস হতে তিনি আয়েশা (রাঃ) হতে নিম্নলিখিত ভাষায় বর্ণনা করেছেন। আয়েশা (রাঃ) বলেনঃ
ما كان رسول الله صلى الله عليه وسلم يمتنع من شيء من وجهي وهو صائم
রাসূল সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম সওম পালন করা অবস্থায় আমার চেহারার কোন অংশ হতেই নিজেকে বিরত রাখতেন না।
আমি (আলবানী) বলছিঃ পূর্বের বর্ণনাটির সাথে এ বর্ণনার দুটি বিরোধ রয়েছেঃ একটি সনদের দিক দিয়ে, আরেকটি ভাষার দিক দিয়ে। সনদের বিরোধটি এই যে, আব্বাস ইবনু যুরায়েহ-এর স্থলে সালেহ আল-আসাদী এসেছে। তিনি হচ্ছেন সালেহ ইবনু আবী সালেহ আল-আসাদী। তিনি মাজহুল যেমনটি সেদিকে হাফিয যাহাবী ইঙ্গিত করেছেন।
আমি "মুসান্নাফ ইবনু আবী শাইবাহ" (৩/৬০) গ্রন্থে ওয়াকী হতে ইমাম আহমাদের বর্ণনার ন্যায় দেখেছি। তা প্রমাণ করছে যে, ওয়াকী হতে ইবনু হিব্বানের বর্ণনাটি শায।
আর ভাষায় বিরোধিতা, তা সামান্য চিন্তা করলেই স্পষ্ট হয়ে যাবে। ইবনু হিব্বানের বর্ণনায় সওম পালন করা অবস্থায় তার (আয়েশার) চেহারার কোন অংশই স্পর্শ করতেন না আর আহমাদ ও ইবনু শাইবার বর্ণনায় তিনি সওম পালন করা অবস্থায় তার চেহারা স্পর্শ করা হতে বিরত থাকতেন না। ইবনু হিব্বানের নিকট ওয়াকীর বর্ণনাটি শায । ইমাম আহমাদ ও ইবনু আবী শাইবার নিকট তার (ওয়াকীর) বর্ণনা ও ইয়াহইয়া ইবনু যাকারিয়ার বর্ণনা তার বিরোধী হওয়ার কারণে। নাসাঈর নিকট যিয়াদ ইবনু আইউবের ভাষা ইমাম আহমাদের ভাষার সাথে মিলে যাওয়ায় সেটিকে আরো শক্তিশালী করছে।
আলোচ্য হাদীছটির বর্ণনাগুলোর ক্ষেত্রে উপরের আলোচনা যাই হোক, আমরা দৃঢ়তার সাথে বলছি যে, এ বর্ণনাটি শায ও মুনকার। আয়েশা (রাঃ) হতে সহীহ সনদে সাব্যস্ত হওয়া হাদীছের কারণেঃ নবী সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম তাকে চুমু দিতেন অথচ তারা উভয়ে সওম অবস্থায় ছিলেন। ইমাম আহমাদ (৬/১৬২) আয়েশা হতে বর্ণনা করেছেন, তিনি বলেনঃ আমাকে রাসূল সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম তার নিকটে নিলেন। তখন আমি বললামঃ আমি সওম অবস্থায় আছি। তিনি বললেনঃ আমিও সওম পালন অবস্থায় আছি।
এ সনদটি সহীহ। এটি সা’আদ ইবনু ইবরাহীম হতে একদল নির্ভরযোগ্য বর্ণনাকারী বর্ণনা করেছেন। যেমনটি আমি "আল-আহাদীছুস সাহীহাহ" (২১৯) গ্রন্থে বর্ণনা করেছি।
মুহাম্মাদ ইবনু আশয়াছ কর্তৃক এককভাবে বর্ণনা করাই হচ্ছে আলোচ্য হাদীছটির সমস্যা। যাদের অবস্থা সম্পর্কে জানা যায় না তিনি তাদের অন্তর্ভুক্ত। ইমাম বুখারী "আত-তারীখুল কাবীর" (১/১/১৬) গ্রন্থে এবং ইবনু আবী হাতিম (৩/২/২০৬) তাকে উল্লেখ করে তার সম্পর্কে ভাল-মন্দ কিছুই বলেননি।
ইমাম বুখারী ও মুসলিম আয়েশা (রাঃ)-এর হাদীছটি নিম্নোক্ত বাক্যেكان يقبل وهو صائم তিনি সওম অবস্থায় চুমু দিতেন যৌথভাবে বর্ণনা করেছেন। তাতে বলা হয়নি যে, তিনি (আয়েশা) সওম অবস্থায় ছিলেন।
كان لا يمس من وجهي شيئا وأنا صائمة، قالته عائشة
منكر
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رواه ابن حبان في صحيحه (904) : أخبرنا عمران بن موسى بن مجاشع حدثنا عثمان بن أبي (شيبة: حدثنا وكيع عن) (1) زكريا بن أبي زائدة عن العباس بن ذريح عن الشعبي عن محمد بن الأشعث عن عائشة قالت: فذكره مرفوعا إلى النبي صلى الله عليه وسلم وقد رواه الإمام أحمد (6 / 162) فقال: حدثنا وكيع عن زكريا به ... مثله، يعني مثل حديث ساقه قبله فقال: حدثنا يحيى بن زكريا حدثني أبي عن صالح الأسدي عن الشعبي عن محمد بن الأشعث ابن قيس عن عائشة أم المؤمنين قالت: " ما كان رسول الله صلى الله عليه وسلم يمتنع من شيء من وجهي وهو صائم ". قلت: وفي هذا السياق مخالفتان: الأولى في السند، والأخرى في المتن
أما المخالفة في السند، فهي أنه جعل مكان العباس بن ذريح، صالحا الأسدي، وهو صالح بن أبي صالح الأسدي، وهو مجهول كما يشير إلى ذلك الذهبي بقوله: " تفرد عنه زكريا بن أبي زائدة
وقد قيل: عنه عن محمد بن الأشعث عن عائشة بإسقاط الشعبي من بينهما، أخرجه النسائي وقال: " إنه خطأ، والصواب الأول " كما في " تهذيب التهذيب ". وأخرجه النسائي في " العشرة " من " الكبرى " (ق 84 / 1) من طريق زياد بن أيوب قال حدثنا ابن أبي زائدة قال: أخبرني أبي صالح الأسدي عن الشعبي به، فهذا يرجح رواية أحمد عن وكيع، ويدل على أن رواية ابن حبان شاذة
ثم رأيتها في " مصنف ابن أبي شيبة " (3 / 60) عن وكيع مثل رواية أحمد. وأما الاختلاف في المتن فظاهر بأدنى تأمل، وذلك أن يحيى بن زكريا، جعل المتن نفي امتناعه صلى الله عليه وسلم من تقبيل وجه عائشة وهو صائم، بينما جعله وكيع - في رواية ابن حبان - نفي تقبيله صلى الله عليه وسلم لها وهي صائمة! فإذا كان لفظ رواية وكيع عند أحمد، مثل لفظ رواية يحيى بن زكريا كما يدل عليه إحالة أحمد عليه بقوله: " مثله " كما سبقت الإشارة إليه، إذا كان الأمر كذلك كانت رواية وكيع عند ابن حبان شاذة لمخالفتها، لروايته عند أحمد ورواية يحيى بن زكريا، ويؤكد هذا موافقة لفظ زياد بن أيوب عند النسائي للفظ أحمد. وسواء كان الأمر كما ذكرنا أولم يكن، فإننا نقطع بأن هذه الرواية شاذة بل منكرة، لمخالفتها للحديث الثابت بالسند الصحيح عن عائشة أنه صلى الله عليه وسلم كان يقبلها وهما صائمان، فقال الإمام أحمد (6 / 162) : حدثنا يحيى بن زكريا قال: أخبرني أبي عن سعد بن إبراهيم عن رجل من قريش من بني تميم يقال له طلحة عن عائشة أم المؤمنين قالت: " تناولني رسول الله صلى الله عليه وسلم، فقلت: إني صائمة، فقال: وأنا صائم ". وهذا سند صحيح، وقد رواه جماعة من الثقات عن سعد بن إبراهيم به نحوه كما بينته في " الأحاديث الصحيحة " فانظر " كان يقبلني ... " (رقم 219)
وعلة حديث الترجمة إنما هي تفرد محمد بن الأشعث بهما، وهن في عداد مجهولي الحال. فقد أورده البخاري في " التاريخ الكبير " (1 / 1 / 16) وابن أبي حاتم (3 / 2 / 206) ولم يذكرا فيه جرحا ولا تعديلا، نعم ذكره ابن حبان في " الثقات " (3 / 231) وروى عنه جمع من الثقات، فمثله حسن الحديث عندي إذا لم يخالف، ولكن لما كان قد تفرد بهذا الحديث وخالف فيه الثقة وهو طلحة بن عبد الله بن عثمان القرشي الذي أثبت أنه صلى الله عليه وسلم كان يقبل عائشة وهي صائمة، كان الحديث بسبب هذه المخالفة شاذا بل منكرا وقد اتق الشيخان على إخراج حديثها بلفظ: " كان يقبل وهو صائم " وليس فيه بيان أنها كانت صائمة أيضا كما في حديث القرشي عنها وقد خفي هذا على بعض أهل العلم، كما خفي عليه حال هذا الحديث المنكر، فقال الصنعاني في " سبل السلام " (2 / 218) : " تنبيه ": قولها: " وهو صائم " لا يدل على أنه قبلها وهي صائمة فقد أخرج ابن حبان بإسناده (عنها) أن النبي صلى الله عليه وسلم كان لا يمس وجهها وهي صائمة، وقال: ليس بين الخبرين تضاد، إنه كان يملك إربه، ونبه بفعله ذلك على جواز هذا الفعل لمن هو بمثابة حاله، وترك استعماله إذا كانت المرأة صائمة، علما منه بما ركب في النساء من الضعف عند الأشياء التي ترد عليهن، انتهى
فقد فات ابن حبان حديث القرشي المشار إليه، وتبعه عليه الصنعاني، وذهل هذا عن علة حديث ابن حبان! وتبعه على ذلك الشوكاني (4 / 180)
ولكن هذا لم يفته حديث القرشي، بل ذكره من طريق النسائي، فالعجب منه كيف ذكر الحديثين دون أن يذكر التوفيق بينهما، والراجح من المرجوح منهما. فهذا هو الذي حملني على تحرير القول في نكارة هذا الحديث، والله ولي التوفيق. ثم إني لما رأيت الحديث في " المصنف " ووجدت متنه بلفظ: " كان لا يمتنع من وجهي وأنا صائمة "، تيقنت شذوذ لفظ ابن حبان، كما تبينت أنه لا علاقة لابن الأشعث به، وإنما هو من ابن حبان نفسه أو من شيخه عمران، والله أعلم